KHABRI SPL: रूस ने खेली चाल, भारत की शह से चीन को मात!


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रोना माहामारी और गलवान घाटी में भारत चीन की कशमकश के बीच विश्व स्तर शाह और मात का कूटनीतिक खेल शुरू हो गया ! इस खेल में विश्व की सभी  सैनिक और आर्थिक  महाशक्तिया शामिल हो गई है हर दिन रोज एक समीकरण बनता है तो एक बिगड़ता है! Covid-19 के बाद जिस तरह से चीन दुनिया पर हमलावर हुआ है वो अमेरिका के इस बयान को सत्य साबित करता है कि चीन महामारी से उपजी स्थिति का फायदा उठाना चाहता है!


इसी शाह और  मात के खेल में भारत ने एक बड़ी शाह खेल दी है और उसके पुराने दोस्त रूस ने चीन को s-400 डिफेंस फ़िलहाल देने से मना कर दिया है !


चलिए आप को आसान भाषा में समझाते है ये कठिन कूटनीतिक खेल ! जो शाह और मात का खेल आज आप देख रहे है इसकी तैयारी में बरसो लगते है बात है  सितंबर 30, 2019 दिन सोमवार जब भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस से सैन्य समझौता करने पर दो टूक कह कि हम नहीं चाहते कि कोई देश हमें बताए कि रूस से क्या खरीदना है और क्या नहीं। हमने हमेशा इस बात को कहा है कि हम क्या सैन्य उपकरण खरीदते हैं, यह हमारा संप्रभु अधिकार है। इसी तरह हम नहीं चाहते कि कोई हमें बताए कि हमें अमेरिका से क्या खरीदना है और क्या नहीं।” ये एक बड़ा बयान था दुनिया में भारत शायद पहला ऐसा देश रहा होगा जिसने अमेरिका और रूस दोनों को जतला दिया था की वो उभरती महाशक्ति है कोई उसके निर्णयों को प्रभावित नहीं कर सकता ! ये विदेश नीति का चरम था !


अब आते है 2020 में जब गलवान घाटी में चीन और भारत आमने सामने थे तो बड़ा सवाल ये था कि रूस किसके साथ है तभी 22 जून 2020 को राजनाथ सिंह रूस जाते है और उससे पहले रूस का एक बयान आता है की चीन उसके दिए हुए S-300 सिस्टम को लद्दाख में तैनात ना करे ये एक छोटा सा बयान देश मीडिया में कहीं खो गया था ! लेकिन वो बयान आज की बड़ी चाल का पहला चरण था ! आप सोच रहे होगे रूस तो हमेशा भारत का साथ देता है बल्कि भारत को कांग्रेस सरकार में UPA २ तक रूस के ही कैंप में माना जाता था ! तो  कहाँ था 1962 में रूस जब चीन ने हम पर अटैक किया !


तो आप को बता दे  18 नवंबर 1962 को जब चीनी सेना के भारतीय भू-भाग में और आगे बढ़ने की खबर आई तो भारतीय बिल्कुल मायूस हो गए. उस वक्त भारत के दोस्त रूस  ने भी साथ छोड़ दिया था. 25 अक्टूबर 1962 को सोवियत के अखबार प्रावडा ने फ्रंट पेज पर एक आर्टिकल छापा था और 1962 के युद्ध के लिए पूरी तरह से भारत को कसूरवार ठहराया था. उस वक्त भी अमेरिका ही भारत के लिए मददगार बनकर सामने आया था. अमेरिका ने चीन के संभावित हमले को रोकने के लिए बंगाल की खाड़ी में यूएसएस किटी हॉक एयरक्राफ्ट कैरियर भेजने की योजना भी बना ली थी. क्यों क्योकि तत्कालीन नेहरु सरकार गुटनिरपेक्षता में विश्वास करती थी चीन पर भरोसा !


तो अब ऐसा क्या हुआ चलिए जानते है की अमेरिका के इतने करीबी के बावजूद रूस ने भारत का साथ दिया ! भारत के कूटनीतिज्ञो ने रूस को बता दिया की अगर भारत कमज़ोर हुआ तो उस दिन से चीन से सबसे ज़्यादा परेशानी रूस को होगी क्योंकि मध्य एशिया में जो वर्चस्व कभी सोवियत यूनियन का था, वो स्थान धीरे-धीरे चीन ने ले लिया है.' दूसरी चीन की दो गलतियां एक तो चीन ने रूस के एक शहर पर अपना दावा ठोंक दिया है. रूस कै इस ऐतिहासिक शहर का नाम है व्लादिवोस्तोक. और दूसरी ब्लंडर है जासूसी


 


मास्को ने चीन पर जासूसी का गंभीर आरोप लगाया था। उन्होंने सेंट पीटर्सबर्ग आर्कटिक सोशल साइंसेज अकादमी के अध्यक्ष वालेरी मिट्को को चीन को गोपनीय सामग्री सौंपने का दोषी पाया था और इसके बाद ही s-400 की  डिलीवरी रोकने का फैसला लिया है। इस कूटनीतिक शाह और मात में आप बने रहिये खबरी के साथ हम फिर हाजिर होगे किसी नई चाल के साथ