क्या “गोल्डन माउंटेन” पर कब्ज़े के लिए लड़ रहे है चीन और भारत

 


 


 



आज हम आप को बताने जा रहे वो रहस्य जिसकी वजह से चीन और भारत आमने सामने है ! अपने ने कभी सोचा हमेशा अरुणाचल प्रदेश को लेकर घुसपैठ करने वाला चीन अचानक से अपना फोकस शिफ्ट करके तिब्बत पर क्यों आक्रामक हो गया ! क्योंकि लद्दाख की पहाड़ियों में यूरेनियम और सोने का अकूत भंडार छिपा हुआ है. और यहीं पर है सच में तिब्बत का गोल्डन माउंटेन जिसे तिब्बती अपना स्थानीय देवता मानते है ! आपको बत्तायेगे क्या सच में है मिथक कहा जाने वाला गोल्डन माउंटेन , कहाँ स्थित है  और किसे किसे उसके बारे में पता है ? और इस रिपोर्ट को सुनते सुनते आपको चीन की हर चाल और आक्रमण का जवाब मिलता चला जायेगा !


तो सबसे पहले आप को बता दे की गोल्डन माउंटेन एक जीता जगाता सत्य है कोई मिथक या परीकथा का पार्ट नहीं है और ये भी सच है इसके बारे में भारत सरकार ,दलाई लामा ,यानि तिब्बत की सरकार और चीन की सरकार जानती थी ! चीन ने मौका देख कर तिब्बत पर कब्ज़ा कर लिया और उस वक्त जब 14वें दलाई लामा को ढूँढने की प्रकिया चल रही थी !


1959 में दलाई लामा के साथ भारी संख्या में तिब्बती भी भारत आए थे। चीन को भारत में दलाई लामा को शरण मिलना अच्छा नहीं लगा। तब चीन में माओत्से तुंग का शासन था उसके बाद आया 1962 का साल कहा जाता है चीन दलाई लामा की शरण से नाराज था 1962 के युद्ध में चुशूल में ही चीन ने सबसे बड़ा हमला किया था. रेज़ांग ला पर जहाँ  भारतीय सेना डटकर लड़ी. 13 कुमाऊं की अहीर रेजिमेंट के मेजर शैतान सिंह शहीद हो गए थे. 1964 में इस पर बलराज साहनी और धर्मेंद्र की फिल्म ‘हक़ीक़त’ बनी थी. अब बात ये की दलाई लामा तो हिमाचल के धर्मशाला में थे  तो चीन चुशूल में क्यों घूसा चलिए थोडा और आसान भाषा में बताते है


1962 में चीन ने आज की बोलचाल वाली भाषा में pangong tso और गलवान घाटी उधर अरुणाचल प्रदेश के बड़े इलाके पर कब्ज़ा कर लिया अब अरुणाचल प्रदेश के कई इलाके तो उसने छोड़ दिए पर यहाँ वो कब्जा कर के बैठ गया जानते है क्यों क्योकि गैलवान इलाके के पास जहाँ चीन और भारत की झड़प हुई थी उसके ठीक बगल में स्थित गोगरा पोस्‍ट के पास 'गोल्‍डेन माउंटेन' है. यहां सोने समेत यूरेनियम, ग्रेनाइट, और रेअर अर्थ जैसी बहुमूल्‍य धातुएं भरी धातुएं छिपी हुई हैं. लद्दाख के कई इलाकों में उच्‍च गुणवत्‍ता वाले यूरेनियम के भंडार मिले हैं. इससे न केवल परमाणु बिजली बनाई जा सकती है, बल्कि परमाणु बम भी बनाए जा सकते हैं. साल 2007 में जर्मनी की प्रयोगशाला में लद्दाख चट्टानों के नमूनों की जांच से पता चला था कि यहां 5.36 प्रतिशत यूरेनियम मौजूद है. जो कि किसी भी दूसरी यूरेनियम खदान से बहुत ज्यादा है.!  अब आपको नेहरु जी के वक्तव्य की हमने केवल बर्फ का रेगिस्तान  खोया है से लेकर  बाजपई के सिक्किम के बदले तिब्बत को मान्यता देने पीछे चीनी चाल समझ आने लगी होगी!


इधर साल 2015 में journalist Liu Jianqiang की एक किताब लंदन में छपी तब दुनिया के सामने तिब्बत के कुछ रहस्य उजागर होने लगे  वही 2014 में सरकार बदलने के बाद चुपचाप भारत  भी इस इलाके में अपनी स्थिति मजबूत करने लगा भारत ने डीएसडीबीओ रोड बना डाली जो गैलवान घाटी के करीब से गुजरती है इस डीएसडीबीओ रोड के बनने से डीबीओ और काराकोरम दर्रा लद्दाख के प्रशासनिक-मुख्यालय लेह से जुड़ गया है जहां पर सेना की 14वीं कोर का मुख्यालय है. सड़क निर्माण के साथ ही भारतीय सेना ने यहां बंकर, बैरक और किलेबंदी का काम भी पूरा कर लिया है.  ये चीन के लिए भारी चिंता का विषय हो गया और  जब भारत ने 370 धारा हटाई और लोकसभा में जब अमित शाह ने ये घोषणा कर दी की हम pok ही नहीं तिब्बत भी ले कर रहेगें तबसे चीन  और आक्रामक हो गया! लेकिन चीन की अब ये चाल उलटी पड़ने वाली है क्योकि  इस 'गोल्‍डेन माउंटेन' के रहस्य से अब सभी देश वाकिफ है और अमेरिका समेत कोई भी देश चीन को इतना ताकत वर होते नहीं देख सकता ! और वही चीन किसी भी कीमत पर ये मुकाम हासिल करना चाहता है ! इसलिए इस बार सर्दी में – 50 डिग्री तापमान के बावजूद गलवान घाटी का इलाका काफी गर्म रहने वाला है!