27 सेप्टेम्बर को राष्ट्रपति ने खेती-किसानी से जुड़े तीन विधेयकों पर हस्ताक्षर कर दिया है ।और ये अब कानून बन गए। इस साल जून में मोदी सरकार कृषि सुधार से जुड़े तीन अध्यादेश लेकर आई थी. अब इन अध्यादेशों की जगह सरकार ने संसद में तीन बिल पेश किए हैं. तीनों बिल लोकसभा से पास हो चुके हैं. हालांकि, इन्हें सरकार के अंदर ही सभी का समर्थन नहीं मिला. केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने इनके विरोध में कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया और अब अकाली दल ने अपना 23 साल पुराना नाता भी एनडीए से तोड़ लिया ! एक तरफ सरकार कह रही है कि ये बिल किसानों की भलाई के लिए हैं. इनसे उनकी आमदनी बढ़ेगी. तो फिर किसान इनका विरोध क्यों कर रहे हैं? पेच कहां फंस रहा है? आखिर इन विधेयकों में ऐसा क्या है? चलिए एक-एक करके समझते हैं. आसान भाषा में. सबसे पहले समझते है की बिल मे क्या है !
1- कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक,2020 के तहत किसान देश के किसी भी कोने में अपनी उपज की बिक्री कर सकेंगे. अगर राज्य में उन्हें उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा या मंडी सुविधा नहीं है तो किसान अपनी फसलों को किसी दूसरे राज्य में ले जाकर फसलों को बेंच सकता है. साथ ही फसलों को ऑनलाइन माध्यमों से भी बेंचा जा सकेगा, और बेहतर दाम मिलेंगे. पहले क्या होता था तो आपने APMC मंडियों का नाम सुना होगा. एपीएमसी का फुल फॉर्म है एग्रीकल्चर प्रोड्यूस एंड लाइव स्टॉक मार्केट कमिटी. वो बाज़ार, जहां किसान अपना उत्पाद बेच सकते हैं. इन मंडियों का संचालन करती हैं राज्य सरकारें. हर राज्य में इनसे जुड़ा एपीएमसी एक्ट भी होता है.ज्यादातर राज्यों में नियम है कि किसान अपनी फसल एपीएमसी मंडियों में ही बेच सकते हैं. बदले में उन्हें फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाना चाहिए पर यहाँ आढ़तियो का राज चलता है अब किसान एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपना उत्पाद बेच सकते हैं. वो दूसरे ज़िलों और राज्यों में भी अपनी फसल बेच सकते हैं. इसके लिए उनको या उनके खरीदारों को एपीएमसी मंडियों को कोई फीस भी नहीं देनी होगी..
2- मूल्य आश्वासन तथा कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता, 2020 के तहत किसानों की आय बढ़ाने को लेकर ध्यान दिया गया है. इसके माध्यम से सरकार बिचौलिओं को खत्म करना चाहती है. ताकि किसान को उचित मूल्य मिल सके. इससे एक आपूर्ति चैन तैयार करने की कोशिश कर रही है सरकार.
सरल भाषामे इसके तहत फसल उगाने से पहले ही एक किसान किसी व्यापारी से समझौता कर सकता है. अब इस समझौते में क्या-क्या होगा?
फसल की कीमत, साथ ही उस प्रक्रिया की जानकारी, जिससे ये कीमत तय की गई
फसल की क्वॉलिटी
कितनी मात्रा में और कैसे खाद का इस्तेमाल होगा इस समझौते में फसल की ओनरशिप किसान के पास रहेगी और उत्पादन के बाद व्यापारी को तय कीमत पर किसानों से उसका उत्पाद खरीदना होगा. हो सकता है कि व्यापारी खेती को स्पॉन्सर भी करे. ऐसे में उसे खेती में लगने वाले बीज, खाद आदि का खर्च उठाना होगा. ऐसे में इस खर्च को ध्यान में रखते हुए फसल की कीमत तय की जाएगी.
बिल के मुताबिक, व्यापारी को फसल की डिलिवरी के वक्त ही तय कीमत का दो-तिहाई किसान को चुकाना होगा. बाकी पैसा 30 दिन के अंदर देना होगा. इसमें ये प्रावधान भी है कि खेत से फसल उठाने की ज़िम्मेदारी व्यापारी की होगी. अगर किसान अपनी फसल व्यापारी तक पहुंचाता है तो इसका इंतज़ाम व्यापारी को ही करना होगा. बिल में इस बात का भी प्रावधान है कि अगर कोई एक पक्ष अग्रीमेंट तोड़ता है तो उस पर पेनल्टी लगाई जा सकेगी. इस पर विपक्ष का कहना है की बड़े घराने सबकी जमीनो पर कब्जा कर लेगे !
3- आवश्यक वस्तु (संशोधन), 2020 के तहत अनाज, खाद्य तेल, आलू-प्याज को आनिवार्य वस्तु नहीं रह गई हैं. इनका अब भंडारण किया जाएगा. इसके तहत कृषि में विदेशी निवेश को आकर्षित करने का सरकार प्रयास कर रही है. अब ये आवश्यक वस्तु (संशोधन), 2020 क्या है 50 के दशक में यानी आज़ादी के ठीक बाद भारत में सूखे और अकाल जैसे हालात थे. तब 1955 में आया आवश्यक वस्तु कानून. आवश्यक वस्तुओं की जमाखोरी रोकने के लिए लाया गया था अब ये आवश्यक वस्तुएं क्या होती हैं? समय के साथ इस कानून में कई बदलाव हुए. आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट में कई चीज़ें जोड़ी गईं. कई हटाई गईं है नए बिल में क्या है?
– बिल के मुताबिक, सरकार के पास ये अधिकार होगा कि वो ज़रूरत के हिसाब से चीज़ों को आवश्यक वस्तुओं की लिस्ट से हटा सकती है या उसमें शामिल कर सकती है.
अब इसका विरोध क्यो हो रहा है तो मुख्य विरोध उस बिल का है जिसमें एपीएमसी मंडियों के बाहर फसल की बिक्री की बात कही गई है.इसमे किसानो को लगता है की मंडियो मे उन्हे एमएसपी मिल जाती थी पर अब बाहर उन्हे कम दाम मिलेगे वही इस बिल के बाद आढ़तियो और बीचौलियों बीच से हट जाएगे तो वो भी इस आंदोलन को हवा दे रहे है !
अब समझिए पंजाब मे सबसे ज्यादा क्यो है बबाल तो समझिए पंजाब का पंजाब कृषि विश्वविद्यालय की एक स्टडी रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 12 लाख से ज्यादा किसान परिवार हैं और 28,000 से ज्यादा कमीशन एजेंट रजिस्टर्ड हैं. भारतीय खाद्य निगम (FCI) पंजाब-हरियाणा में अधिकतम चावल और गेहूं की खरीदारी करता है. 2019-20 में रबी खरीद सीजन में पंजाब में 129.1 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई थी. जबकि कुल केंद्रीय खरीद 341.3 लाख मीट्रिक टन हुई थी. साफ है कि कृषि से पंजाब की अर्थव्यवस्था सीधे तौर पर जुड़ी है. किसानों को डर सता रहा है कि नए कानून से केंद्रीय खरीद एजेंसी यानी FCI उनका उपज नहीं खरीद सकेगी और उन्हें अपनी उपज बेचने में परेशानी होगी और एमएसपी से भी हाथ धोना पड़ेगा वही प्रदेश सरकार को लगता है उसे मंडी टैक्स का बड़ा नुकसान हो सकता है ! इसी लिए पंजाब मे प्रदेश सरकार ने सभी सरपंच को इसका विरोध करने को कहा है !
अब क्या कहते है विशेषज्ञ तो इस पर उनकी राय भी बटी हुई है कुछ का कहना है की आप मार्केट खोल रहे हैं, जहां व्यापारी और किसान एकसाथ पहुंच सकते हैं और सीधे व्यापार कर सकते हैं. इससे बिचौलियों को जो कमीशन देना पड़ता है, वो पूरी तरह बच सकता है. कई राज्य इसका विरोध कर रहे हैं क्योंकि ये काम बंद होने से उनको मंडी फीस के तौर पर जो रेवेन्यू मिलता था, वो कम हो जाएगा.
वही कुछ की राय ये है की कमजोर और छोटे किसानो को बाज़ार के हवाले करने का कदम आत्मघाती होगा ! आपकी क्या राय है हमे जरूर बताए!