हाथरस : क्या होता है नार्को टेस्ट जानिए सब कुछ ?

 


 


 



 


 


बहुचर्चित हाथरस कांड मे गृह सचिव भगवान स्वरूप की अध्यक्षता मे गठित एसआईटी की पहली रिपोर्ट मिलने के बाद एसपी विक्रांत वीर और सीओ राम शब्द  समेत पाँच पुलिस कर्मियों को निलंबित कर दिया है!


अपर मुख्य सचिव  अवनीश कुमार अवस्थी ने बताया की एसपी समेत सभी निलंबित पुलिस कर्मियों ,वादी यानि लड़की के माता – पिता , और आरोपित और इससे संबन्धित लोगो का नार्को टेस्ट और पालीग्राफिक टेस्ट करने के निर्देश दिये गए है ! ऐसा पहली बार  होगा की आरोपित के अलावा पुलिस अधिकारी , और वादी का भी नार्को टेस्ट किया जाएगा ! आज हम आपको बताएगे की क्या होता है नार्को टेस्ट , ऐसा क्या हुआ की वादी का भी नार्को टेस्ट कराने की जरूरत पड़ी , क्या नार्को टेस्ट अदालत मे साक्ष्य के तौर पर इस्तेमाल हो सकते है ?


सबसे पहले जानते है की नार्को टेस्ट होता क्या है और कैसे होता है !


इस टेस्ट को किसी व्यक्ति से सच उगलवाने के लिए किया जाता है. इस टेस्ट को फॉरेंसिक एक्सपर्ट, जांच अधिकारी, डॉक्टर और मनोवैज्ञानिक आदि की मौजूदगी में किया जाता है. इस टेस्ट में किसी व्यक्ति को "ट्रुथ ड्रग" नाम की एक साइकोएक्टिव दवा दी जाती है या फिर " सोडियम पेंटोथल या सोडियम अमाइटल" का इंजेक्शन लगाया जाता है. इस दवा का असर होते ही व्यक्ति ऐसी अवस्था में पहुँच जाता है. जहां व्यक्ति पूरी तरह से बेहोश भी नहीं होता और पूरी तरह से होश में भी नहीं रहता है. मतलब  व्यक्ति की तार्किक शक्ति  कमजोर कर दी जाती है जिसमें व्यक्ति बहुत ज्यादा और तेजी से नहीं बोल पाता है. इन दवाइयों के असर से कुछ समय के लिए व्यक्ति के सोचने समझने की क्षमता खत्म हो जाती है.


इस स्थिति में उस व्यक्ति से किसी केस से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं. चूंकि इस टेस्ट को करने के लिये व्यक्ति के दिमाग की तार्किक रूप से या घुमा फिराकर सोचने की क्षमता ख़त्म हो जाती है इसलिए इस बात की संभावना बढ़ जाती कि इस अवस्था में व्यक्ति जो भी बोलेगा सच ही बोलेगा.


चलिये जानते है ये कितना खतरनाक होता है किसी का भी नार्को टेस्ट करने से पहले उसका शारीरिक परीक्षण किया जाता है जिसमें यह चेक किया जाता है कि क्या व्यक्ति की हालात इस टेस्ट के लायक है या नहीं. यदि व्यक्ति; बीमार, अधिक उम्र या शारीरिक और दिमागी रूप से कमजोर होता है तो इस टेस्ट का परीक्षण नहीं किया जाता है.व्यक्ति की सेहत, उम्र और जेंडर के आधार पर उसको नार्को टेस्ट की दवाइयां दी जाती है. कई बार दवाई के अधिक डोज के कारण यह टेस्ट फ़ैल भी हो जाता है इसलिए इस टेस्ट को करने से पहले कई जरुरी सावधानियां बरतनी पड़तीं हैं.


कई केस में इस टेस्ट के दौरान दवाई के अधिक डोज के कारण व्यक्ति कोमा में जा सकता है या फिर उसकी मौत भी हो सकती है इस वजह से इस टेस्ट को काफी सोच विचार करने के बाद किया जाता है.


अब बड़ा सवाल ये की क्या अदालत मे ये साक्ष्य के तौर पर इस्तेमाल हो सकते है वर्ष 2010 में K.G. बालाकृष्णन वाली 3 जजों की खंडपीठ ने कहा था कि जिस व्यक्ति का नार्को टेस्ट या पॉलीग्राफ टेस्ट लिया जाना है उसकी सहमती भी आवश्यक है. हालाँकि सीबीआई और अन्य एजेंसियों को किसी का नार्को टेस्ट लेने के लिए कोर्ट की अनुमति लेना भी जरूरी होता है. जजों का कहना था आर्टिक्ल 20(3) किसीभी व्यक्ति की निजता की सुरक्षा  करता है और ये व्यक्ति का अधिकार है की वो बोले या चुप रहे ! वहीं Evidence Act.” का Section 27 के अनुसार अगर कोई स्वेच्छा से ये टेस्ट करता है तो वो अदालत मे साक्ष्य के तौर पर इस्तेमाल हो सकते है लेकिन  अपराध की विवेचना मे ये काफी महत्व पूर्ण हो सकता है !


अब सवाल ये की पुलिस अधिकारी समेत पुलिस वालों का क्यो ? तो इसके पीछे सरकार की ये जानना चाहती है कि कही कुछ छिपाया तो नहीं जा रहा हो सकता है पुलिस कर्मियों और अधिकारियों के टेस्ट से कसे के कुछ अन छूये पहलू सामने आ जाए ! पुलिस की शुरुआती जाँच और भूमिका पर कई गंभीर सवाल उठे हैं, जिनके जवाब अभी नहीं मिल सके हैं.पहला  पुलिस ने घटना स्थल को सील क्यों नहीं किया. घटना के पहले दिनों में वहाँ से साक्ष्य क्यों नहीं जुटाए? दूसरा . रात के अंधेरे में ज़बरदस्ती अंतिम संस्कार क्यों किया?तीसरा . पीड़िता के परिवार के साथ उसकी मेडिकल रिपोर्ट साझा क्यों नहीं की? और चौथा . तकनीकी साक्ष्य क्यों नहीं जुटाए गए और अभियुक्तों की गिरफ़्तारी में देर क्यों की गई?


अब पीड़िता के माता पिता का क्यो ? तो इसको भी समझते है 14 सितंबर को पीड़िता के भाई ने जो शिकायत पुलिस को दी थी उसमे सिर्फ हत्या के प्रयास का मामला था फिर 19 सितंबर को काँग्रेस के पूर्व राष्‍ट्रीय सचिव श्योराज जीवन के पीड़ता को देखने पहुचे और उसी दिन गाँव मे उसके परिवार से भी मिले ,उसके बाद पीड़िता ने छेड़ खानी का आरोप लगा दिया फिर मुद्दा गरमाने लगा और 22 सितंबर को दोबारा बयान लिए गए तो रेप की बात कही और आरोपितों के नाम भी बताए ! पीड़िता के पिता भी कई बार बयान बदल चुके है !हालांकि पहले मेडिकल चेकअप मे  और फोरंसिक जांच मे कोई ऐसे साक्ष्य नहीं मिले बाद मे पोस्टमार्टम रिपोर्ट मे भी रेप की पुष्टि नहीं हुई ! ऐसे मे जो आरोप लग रहे है उनको कोर्ट मे साबित करना मुश्किल है इस पर इतनी राजनीति होने के कारण यदि आरोपीयो पर रेप का  आरोप साबित नहीं हुआ तो फिर सरकार पर आरोप आयेगा कि वो आरोपित को बचा रही है !


बरहाल एक देश की बेटी क्रूरता का शिकार हुई और उसकी हत्या की गई उसे कुछ भी करके इंसाफ मिलना चाहिए और दंड  ऐसा जिसे देख कर बाकी के लिए नज़ीर बने !