चलिए बात करते हैं उन खबरों की जो पिछले हफ्ते सुर्खियों में रही और आपको बताएंगे उन खबरों के पीछे की खबर जो आप कहीं नहीं पाएंगे!
चलिए शरूआत करते इस हफ्ते की तीन प्रमुख खबरों से जो देश की सुर्खियां बनी रही ,और करेंगे विश्लेषण की आखिर क्यों ये खबरे देश में सुर्खियों में बनी रही -----------तो संक्षेप में जो तीन प्रमुख खबरें रही वह है
हैं।सबसे पहले खबर है वो है हिंदुओं की संपत्ति छीनने का औजार बना वक्फ एक्ट 1995 दूसरी बड़ी खबर जो सुर्खियों में आ गई वो है भारत जोड़ो यात्रा के बीच टूटती कांग्रेस, और अंत में मुफ्त में बिजली या अँधेरे की ओर !
तो चलिए शुरुवात करते है पहली खबर से इस देश में सर्वोच्च न्यायालय कौन है आपका उत्तर होगा सुप्रीम कोर्ट लेकिन आप गलत है इस देश में सबसे ज्यादा शक्ति अगर किसी के पास है तो वो है वक्फ बोर्ड और उसके निर्णय को आप सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती नहीं दे सकते आप कई पीढ़ियों से अपने घर में रह रहे है अचानक एक दिन आपके पास एक नोटिस आता है आपको पता चलता है कि ये घर आपका नहीं है वो वक्फ का है वक्फ एक्ट (Waqf Act 1995) का सेक्शन 3 बताता है कि अगर वक्फ सोचता है कि जमीन किसी मुस्लिम से संबंधित है, तो वह वक्फ की संपत्ति है. यहां ध्यान दीजियेगा कि वक्फ का सिर्फ सोचना ही काफी है, उसे इसके लिए किसी सबूत की जरूरत नहीं है. अगर वक्फ ने ये मान लिया कि आपकी संपत्ति, आपकी नहीं, बल्कि वक्फ बोर्ड की है तो फिर आप अदालत भी नहीं जा सकते. आप वक्फ की ट्रिब्यूनल कोर्ट में जा सकते हैं.और ट्रिब्यूनल कोर्ट के मेंबर होंगे सिर्फ मुसलमान ! ये कारनामा किया है हमारी कांग्रेस सरकार ने 1995 में उन्होंने ऐसा कानून बनाया की जो देशभर में वक्फ बोर्ड को ये अधिकार देता है कि वो किसी भी संपत्ति पर अपना हक जता सकता है और इसके खिलाफ पीड़ित पक्ष देश की किसी अदालत में गुहार तक नहीं लगा सकता. ये सुनने में ही अजीब लगता है कि एक धर्मनिरपेक्ष देश में ऐसा एक्ट है. जबकि किसी मुस्लिम देश में ऐसा कोई एक्ट नहीं है.
आपको बता दे तमिलनाडु में त्रिची जिले के तिरुचेंथुरई गांव में एक ऐसा वाकया सामने आया की वक्फ ने 1500 साल पुराने मंदिर पर कब्ज़ा जता दिया जबकि इस्लाम सिर्फ 1400 साल पुराना है !इसी का असर है कि वर्ष 2009 में वक्फ बोर्ड की संपत्तियां चार लाख एकड़ जमीन पर फैली थी. जो अब बढ़कर दोगुनी से भी ज्यादा हो चुकी हैं. जबकि देश में जमीन उतनी ही है जितनी पहले थी. फिर भी वक्फ बोर्ड की जमीन कैसे बढ़ रही है?
अब नज़र डालते है दूसरी बड़ी खबर पर गोवा के आठ कांग्रेसी विधायक जिस तरह पालाबदल कर भाजपा में चले गए, वह कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है।
सिर्फ गोवा ही क्यों असम में प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एपीसीसी) के महासचिव कमरुल इस्लाम चौधरी ने रविवार को पार्टी छोड़ दी उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा पार्टी दिशाहीन और भ्रमित है वो राष्ट्रपति चुनाव में हुई क्रॉस वोटिंग पर कोई एक्शन न होने से भी निराश थे !
उसके बाद तेलंगाना में पार्टी के बड़े नेता एमए खान ने शनिवार को इस्तीफा दे दिया। राज्यसभा के पूर्व सदस्य एमए खान ने वरिष्ठ कांग्रेस नेतृत्व को लिखे अपने पत्र में कई आरोप लगाए हैं। उन्होंने लिखा है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी जनता को यह समझाने में पूरी तरह विफल रही है की उसकी विचारधारा है क्या !
वहीं यात्रा से पहले पार्टी छोड़ चुके गुलाम नबी आज़ाद ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी का नाम लिए बिना कहा, " आपने किया ही क्या है ? आप 24 घंटे प्रधानमंत्री को गालियां देते रहते हैं। नतीजा यह होता है कि आप अपनी सीट तक गंवा बैठे।" बात यही नहीं रुकने वाली जिस तरह के तैयारी पंजाब में चल रही है, ये हो सकता है जब तक राहुल गाँधी की यात्रा पंजाब पहुंचे कुछ अप्रत्याशित उनका इंतजार कर रहा हो कैप्टन इस महीने बीजेपी में शामिल हो चुके है , सुनील झाखड़ को बड़ी जिम्मेदारी सौपी जाने वाली है खबर है की लगभग आधी कांग्रेस तो बीजेपी के संपर्क में है ही दो तिहाई होने का इंतजार है !वक्त का तकाजा तो इस वक्त कांग्रेस को भारत जोड़ो अभियान से ज्यादा जरूरत पार्टी जोड़ो मुहिम शुरू करने का है!
अब बात करते है तीसरी बड़ी खबर की तरफ जो देश के लिए बहुत जरूरी है फ्री की बिजली पिछले दिनों तो तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने यह घोषणा कर दी कि यदि 2024 में गैर भाजपा सरकार बनी तो देश भर के किसानों को बिजली के साथ पानी भी मुफ्त दिया जाएगा। हालांकि अभी विपक्षी एकता का अता-पता नहीं है, लेकिन चंद्रशेखर राव की घोषणा यही इंगित करती है कि आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों में मुफ्त बिजली देने पर और जोर दिया जाएगा। वैसे भी केजरीवाल की पार्टी घूम घूम कर फ्री बिजली का प्रचार कर ही रही है और पंजाब का उदहारण सामने है अभी govt employee को सैलरी देने के पैसे नहीं थे RBI वैसे भी चेता चूका है की अगर ये सब बंद नहीं किया गया तो देश की स्थिति श्रीलंका जैसी हो सकती है !
समस्या केवल यह नहीं कि एक के बाद एक राजनीतिक दल मुफ्त बिजली देने का वादा करने में लगे हुए हैं, बल्कि यह भी है कि वे इसके औचित्य को इसके बाद भी सही ठहराने में लगे हुए हैं कि इससे बिजली बोर्डों की हालत और अधिक खस्ताहाल हो रही है। निःसंदेह निर्धन-वंचित वर्गों को रियायती मूल्य पर बिजली देना समझ आता है, लेकिन इसका कोई औचित्य नहीं कि सक्षम लोगों को भी लागत से कम मूल्य पर या फिर मुफ्त बिजली दी जाए।
यह चिंताजनक है कि मुफ्त बिजली देने के वादे एक ऐसे समय किए जा रहे हैं, जब न तो राज्य बिजली बोर्डों का घाटा थम रहा है और न ही बिजली वितरण कंपनियों पर इन बोर्डों की देनदारी कम हो रही है। इस स्थिति के बाद भी इसमें संदेह है कि उन राजनीतिक दलों पर कोई असर पड़ेगा, जो चुनावी लाभ हासिल करने के लिए मुफ्त बिजली देने के वादे करने में लगे हुए हैं।