NEWS ANALYSIS : इस हफ्ते की सुर्खिया

 स्वागत  है आपका हमारे साप्ताहिक शो NEWS ANALYSIS  के इस नए एपिसोड में,

चलिए बात करते हैं उन खबरों की जो पिछले हफ्ते सुर्खियों में रही और आपको बताएंगे उन खबरों के पीछे की खबर जो आप कहीं नहीं पाएंगे!


NEWS ANALYSIS

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चलिए शरूआत करते इस हफ्ते की तीन प्रमुख खबरों से जो देश की सुर्खियां बनी रही ,और करेंगे विश्लेषण की आखिर क्यों ये खबरे देश में सुर्खियों में बनी रही ---------- सबसे पहले बात करते हैं चिंतन शिविर की जिसमें प्रधानमंत्री ने फर्जी खबरों को देश के लिए एक बड़ा खतरा बताते हुए चिंता व्यक्त की,  फिर बात करेंगे ऋषि सुनक की   जिन्होंने    दुनिया भर में  भारतवंशियों   के बारे में धारणा  बदल दी , अंत में बात करेंगे छठ के महापर्व  के वैभव की जो दो  साल बाद किसी वरदान की तरह लौट आया


 चलिए शुरुआत करते हैं प्रधानमंत्री के चिंतन शिविर के संबोधन जिस प्रकार से प्रधानमंत्री ने राज्यों के गृहमंत्री के चिंतन शिविर में फर्जी खबरों को लेकर चिंता व्यक्त की वह वाकई में चिंता का विषय है! पहले समय में जब इंटरनेट नहीं हुआ करता था तब यही काम अफवाहों के जरिए होता था लेकिन  अब अफवाहों को टेक्नोलॉजी के पैर मिल गए और उन्होंने और भी तेजी से दौड़ना शुरू कर दिया!   फर्क इतना है पहले अफवाह हुआ करती थी अब अफवाह  की जगह फर्जी खबरों ने ले ली है  और ये फर्जी और झूठी खबरें देश की  के लिए  बड़ा खतरा बन गई है! प्रधानमंत्री के बाद विदेश मंत्री जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद विरोधी समिति में   सिलसिलेवार ढंग से यह बताया  कि किस प्रकार से आतंकियों ने सोशल नेटवर्क साइट को एक टूल की तरह यूज किया!हालंकि वह कोई नई बात नहीं, लेकिन इससे यह तो पता चलता ही है कि सूचना तकनीक के दुरुपयोग पर लगाम लगाने की आवश्यकता है। इसमें संदेह है कि फर्जी खबरें गढ़ने और उनके माध्यम से विद्वेष फैलाने के सिलसिले पर रोक लगाने के लिए विश्व समुदाय संयुक्त रूप से कोई कदम उठाएगा। इस संदेह का कारण यह है कि वह अभी तक आतंकवाद को परिभाषित करने का भी काम नहीं कर सका है। शायद यही कारण है कि अलग-अलग देश अपने-अपने स्तर पर इंटरनेट के दुरुपयोग पर लगाम लगाने के लिए कदम उठा रहे हैं! भारत को भी ऐसा करना होगा लेकिन सोशल नेटवर्क साइट इसमें सहयोग देने के लिए तैयार नहीं दिख रही है अभिव्यक्ति की  स्वतंत्रता के नाम पर आतंकियों,  समाज में घृणा फैलाने वाले तत्वों  के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाए उन्हें संरक्षण देने का काम करती है ! यह किसी से छिपा नहीं कि सोशल नेटवर्क साइट्स और विशेष रूप से ट्विटर किस तरह उन नियम-कानूनों को मानने के लिए तैयार नहीं, जो भारत सरकार ने बनाए हैं।  अभी हाल में ही हमारे सामने कई उदाहर ण है जैसे कृषि कानून विरोधी आंदोलन के समय भारत सरकार को बदनाम करने वाली टूलकिट ट्विटर के जरिये ही साझा की जा रही थी। ऐसा ही काम नुपुर शर्मा प्रकरण में भी किया गया। इसी तरह क्रिकेटर अर्शदीप सिंह के खिलाफ भी पाकिस्तान से अभियान चलाया गया। चूंकि अब इसमें कहीं कोई संदेह नहीं रह गया है कि फर्जी खबरें गढ़ने के काम ने एक उद्योग का रूप ले लिया है और इंटरनेट आधारित अनेक माध्यम उसे हतोत्साहित करने के लिए कुछ नहीं करना चाहते, इसलिए सरकार को ही अपने स्तर पर यह सुनिश्चित करना होगा कि यह खतरनाक उद्योग फलने-फूलने न पाए। इसी तरह उसे सोशल नेटवर्क साइट्स की मनमानी पर भी लगाम लगाने के लिए सक्रिय होना होगा।


 बात करते हैं ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री  ऋषि सुनक की, ऋषि सुनक का प्रधानमंत्री बनना वाकई विश्व भर में  फैले  भारतवंशियों के लिए एक गर्व का क्षण है।,लेकिन हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वो एक ब्रिटिश नागरिक है और ब्रिटेन के प्रधानमंत्री इसलिए उनकी पहली प्राथमिकता ब्रिटेन  के हितों की रक्षा होगी! यूँ तो कई  देशों के शासन अध्यक्ष भारतीय रह चुके हैं लेकिन ब्रिटेन वीटो पावर वाला देश है और G7 समूह का हिस्सा है! जिस वक्त में उन्होंने ब्रिटेन की बागडोर संभाली है वह वाकई बड़ा कठिन वक्त है , उसकी आर्थिक साख दांव पर लगी है  उनके सामने गंभीर चुनोतियाँ   हैं!


भारत यह भी आशा कर सकता है कि ब्रिटेन कश्मीर समस्या के समाधान में सहायक होगा और उन तत्वों पर लगाम लगाने में भी सक्रियता दिखाएगा, जो भारतीय हितों के लिए खतरा हैं। यह किसी से छिपा नहीं कि वहां खालिस्तानी तत्व सक्रिय हैं। हाल में लेस्टर और बर्मिंघम में उपजे तनाव ने भी यही बताया कि वहां हिंदू विरोधी तत्व भी निरंकुश हो रहे हैं। चूंकि ऋषि सुनक हिंदू हैं और वह इस पर गर्व भी करते हैं इसलिए ऐसे तत्व उन्हें एक खास निगाह से देखने और उन्हें अनावश्यक रूप से कठघरे में खड़ा करने का काम कर सकते हैं। ऐसे तत्वों से उन्हें सतर्क रहना होगा।


करोना महामारी की  2 वर्ष लंबे अंधकार के बाद सूर्य उपासना इस  महापर्व का वैभव किसी वरदान की तरह लौट आया है। जी हां हम बात कर रहे हैं चार दिवसीय महापर्व छठ  की जो पूर्वांचल से उठकर पूरे विश्व में फैल गया सूर्य को स्वास्थ्य का स्रोत माना गया है। याद कीजिए, यह माना गया था कि भारत में सूर्य की कृपा से चूंकि खूब गरमी पड़ती है, इसलिए कोरोना वायरस ज्यादा कहर नहीं दिखा पाएगा। आंकडे़ गवाह हैं और व्यावहारिक रूप से भी पूर्वांचल का समाज कोरोना से कभी भी ज्यादा आतंकित नहीं हुआ। निस्संदेह, नदियों और जलाशयों से समृद्ध इस समाज का सूर्य पर विश्वास अतुलनीय है। इसी का उत्कर्ष हम चार दिवसीय महापर्व छठ में निहारते हैं। अनुपम श्रद्धा और आस्था के साथ पूर्वांचल के लोग सूर्य उपासना के लिए उमड़ पड़ते हैं। मुख्य रूप से निरोगी काया और लंबी आयु की कामना करते हैं। सूर्य अनादि काल से अक्षय ऊर्जा का स्रोत है और यह ऊर्जा तन-मन-धन का आधार है।


यह महापर्व बहुत विशाल है लेकिन दुःख की बात ये है  इसके लिए हमारी सरकारों के पास पर्याप्त योजना या चिंता नहीं है। गंगा किनारे छठ करने वाले उस यमुना को कैसे अपनाएंगे, जिसमें पानी नहीं, जहर-सा झाग बहता है?  गौर कीजिए, दिल्ली से पटना का किराया 17,800 रुपये और दिल्ली से वाराणसी का किराया 17,000 रुपये हो गया। उधर, एक दावा है कि छठ पर 84 स्पेशल ट्रेनें चलाई जा रही हैं, नियमित गाड़ियों में भी कोई जगह नहीं है यह जो टे्रनों में किराये का नया सिस्टम है, उसकी सर्वाधिक कीमत पूर्वांचल के लोग ही चुकाते हैं! सवाल उठता है, क्या यह व्यवस्था सही या न्यायपूर्ण है? भारत जैसे कल्याणकारी राज्य में सरकारों को सदैव सचेत रहना चाहिए कि जरूरत पड़ने पर किसी का भी दिल न दुखे, शोषण न हो। सीखना चाहिए सूर्य देव से, जो कभी किसी से कोई भेद नहीं करते, सबको समान ऊर्जा देते हैं।